
- न्यूनतम मजदूरी 26000 रुपए प्रतिमाह करने, न्यूनतम पेंशन 9000 प्रतिमाह करने, पुरानी पेंशन योजना बहाल करने आदि को लेकर 20 मई को हड़ताल।
सूचनाजी न्यूज, भिलाई। 4 श्रम कानून को लेकर देशभर में ट्रेड यूनियनों ने मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है। 20 मई को हड़ताल भी होनी है। आखिर, इसमें क्या है? कर्मचारियों और ट्रेड यूनियनों को क्या नुकसान है? तमाम पहलुओं पर भिलाई स्टील प्लांट की पूर्व मान्यता प्राप्त यूनियन सीटू ने प्रेजेंटेशन दिया।
सीटू का कहना है कि संहिताकरण की आड़ में कर्मचारी विरोधी श्रम कानून संशोधनों को वापस लेने, सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण विनिवेश कारण पर रोक लगाने न्यूनतम मजदूरी 26000 रुपए प्रतिमाह करने, न्यूनतम पेंशन 9000 प्रतिमाह करने, पुरानी पेंशन योजना बहाल करने, जैसी ज्वलंत मांगों सहित अन्य जन विरोधी मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ 20 मई को हड़ताल है।
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इसको लेकर चलाए जा रहे प्रचार अभियान के तहत शनिवार को सीटू कार्यालय में श्रम कानून संहिताएं लागू होने के पश्चात कर्मियों पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर एक पावर पॉइंट प्रस्तुतीकरण आयोजन किया गया।
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श्रम संहिताकरण एक छलावा है
सीटू नेता एसपी डे ने कहा-संहिताकरण के नाम पर केंद्र सरकार द्वारा 29 श्रम कानूनों का विलय कर अधिनियमित किए गए 4 श्रम संहिताओं में शामिल मजदूर विरोधी श्रम संशोधन वास्तव में एक ऐसा छलावा है, जिसके द्वारा विभिन्न कानूनों को सरल बनाने के घोषित उद्देश्य की आड़ में श्रमिकों से उन अधिकारों को छिना गया है, जो उन्होंने लंबे संघर्ष के पश्चात प्राप्त किया था।
वेतन संहिता संसद द्वारा 2019 में पारित की गई तथा अन्य 3 श्रम संहिताएं-‘औद्योगिक संबंध संहिता’, ‘सुरक्षा संहिता’ तथा ‘व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संहिता’ को संसद द्वारा 2020 के मानसून सत्र में पारित किया गया।
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किन-किन श्रम कानून का विलय कर बनाया गया चार श्रम संहिता
29 श्रम कानूनों को विलय कर बनाया गया है श्रम संहिताएं-
वेतन संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता तथा ‘व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दशा संहिता’
सामाजिक सुरक्षा संहिता।
वेतन संहिता का प्रभाव-
1 दिन की अनाधिकृत अवकाश पर कट सकता है 8 दिन का वेतन
4 श्रम कानून – मजदूरी भुगतान अधिनियम, न्यूनतम वेतन अधिनियम, बोनस भुगतान अधिनियम तथा समान मज़दूरी अधिनियम को समाहित कर बनायी गयी ‘वेतन संहिता’ में न्यूनतम वेतन निर्धारित करने के वैज्ञानिक आधार को ना अपना कर ‘फ्लोर वेज’ अवधारणा लाया गया है, जो पूरी तरह भ्रामक है।
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न्यूनतम वेतन निर्धारित करने के लिए 45 वें श्रम सम्मेलन की सिफारिश एवं सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को ना मानकर सरकार द्वारा तैयार किए गए फ्लोर वेतन की अवधारणा के तहत निर्धारित न्यूनतम वेतन 31 राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन से भी कम है।
इसमें एक दिन की अनाधिकृत अनुपस्थिति पर 8 दिन की वेतन कटौती का प्रावधान है। बोनस निर्धारित करते समय कंपनी की बैलेंस शीट एवं लेखा जोखा देखने का यूनियन को प्राप्त अधिकार भी हटा लिया गया है।
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औद्योगिक संबंध संहिता-300 से कम कर्मचारी वाले प्रतिष्ठानों पर लागू नहीं होगा स्थाई आदेश
औद्योगिक संबंध संहिता में पंजीयक को किसी व्यवसायिक संघ द्वारा संहिता के किसी भी प्रावधान के उल्लंघन की सूचना प्राप्त होने पर उस व्यवसायिक संघ का पंजीयन निरस्त करने का अलोकतांत्रिक अधिकार दिया गया है।
‘निश्चित अवधि रोजगार’ की अवधारणा पर आधारित प्रावधान को जोड़कर प्रबंधन को अधिकार दिया गया है कि वह 60 वर्ष की सेवानिवृत्ति आयु के लिए किसी कर्मी की नियुक्ति ना कर अल्प अवधि के लिए नियुक्ति कर सकता है । 300 से कम कर्मी वाले औद्योगिक प्रतिष्ठान के मालिकों/ नियोक्ताओं को छँटनी /तालाबंदी के लिए किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी।
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इसके अलावा 300 से कम कर्मी वाले उद्योगों को ‘औद्योगिक नियोजन अधिनियम’ (स्थाई आदेश) के दायरे से बाहर रखकर वहां साप्ताहिक अवकाश, प्रतिदिन काम के घंटे, अवकाश लेने के नियम, अनुशासनात्मक कार्यवाही आदि मामलों में प्रबंधन को स्वेच्छाचारिता की छूट दे दी गई है। 18000 प्रतिमाह से अधिक वेतन प्राप्त करने वाले सुपरवाइजर का कार्य करने वाले कर्मी को वर्तमान श्रम संहिताओं के प्रावधानों के अंतर्गत कर्मियों को प्राप्त, अधिकारों से भी वंचित रखा गया है।
‘व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दशा संहिता-बिना समुचित सरकार की अनुमति के कारखाना निरीक्षक जांच हेतु नहीं कर पाएगा कारखाना में प्रवेश
13 श्रम कानूनों को विलय कर बनाए गए ‘व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य दशा संहिता’ के अस्तित्व में आने के साथ ही अलग-अलग क्षेत्रों के मजदूरों के लिए बना श्रम कानून विलोपित हो गया है। अपने उद्देश्य एवं विषय वस्तु में यह संहिता भी परिभाषाओं के द्वारा भ्रम उत्पन्न कर उल्लंघन को बढ़ावा देती है।
उदाहरण के लिए अध्याय 5 जिसमें स्वास्थ्य एवं कार्य दशा का उल्लेख है, में कर्मियों को संदर्भित किया गया है, जबकि अध्याय 6 जिसमें काम के घंटे एवं कल्याण से संबंधित प्रावधान है, में श्रमिकों को संदर्भित किया गया है । क्या इसका अर्थ यह है कि अध्याय 5 कर्मियों के लिए तथा अध्याय 6 श्रमिकों के लिए है। महिलाओं को रात्रि पाली में कार्य करवाने की छूट दी गई है। मजदूरों तथा ट्रेड यूनियनों की शिकायत पर कारखाना निरीक्षक को बिना उपयुक्त सरकार की अनुमति लिए कारखाने में प्रवेश नहीं कर सकने का प्रावधान जोड़ा गया है।
इसी तरह ईएसआई में अंशदान को घटा दिया गया है ताकि मालिकों को लाभ पहुँचाया जा सके । इस संहिता के माध्यम से ठेका श्रमिकों के मामले में जो पहले गैरकानूनी था वह अब कानूनी हो गया है। अब 50 से कम कर्मियों की नियुक्ति करने वाले ठेकेदार को किसी भी तरह का श्रमिक लाइसेंस प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है।
कारखाना निरीक्षक भी अब बिना संबंधित राज्य सरकार की अनुमति के किसी भी कारखाने में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। इसी तरह अलग-अलग क्षेत्रों जैसे कारखाने, निर्माण कार्य, बीड़ी एवं सिगार, खदान, बंदरगाह, श्रमजीवी पत्रकार, सेल्स प्रमोशन कर्मचारी, यातायात परिवहन जैसे अलग-अलग उद्योगों में नियुक्त मजदूरों और उनके उद्योग विशेष में व्याप्त खतरों से सुरक्षा दिलवाने के कुछ प्रावधान थे। इन सभी प्रावधानों को संहिताकरण के नाम पर विलोपित कर दिया गया है।