Labor Day 2025: नौकरी 8 घंटे केवल श्रम कानून की किताबों में, हकीकत में मजदूर कोल्हू का बैल

Labor Day 2025: 8 hours job only in labor law books
गरीब और गरीब होते जाना मजदूरों की नियति है। फिर भी हम बड़े मनोयोग से नारा लगाते हैं...मजदूर दिवस अमर रहे।
  • मजदूर जिंदगी भर मजदूर ही बना रह जाता है। गरीब और गरीब होते जाना मजदूरों की नियति है।

सूचनाजी न्यूज, रायपुर। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रति दिन कार्य की अवधि 8 घंटे की तय है। इसमें आधे घंटे का भोजन अवकाश शामिल है। बाकी देशों का तो पता नहीं, पर भारत में लोगों से कोल्हू के बैल मानिंद काम लिया जाता है।

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खास कर के निजी संस्थानों में ये शत-प्रतिशत सच है। कहने को 8 घंटे केवल श्रम कानून की पुस्तकों में ही है। हकीकत तो यही है कि काम पर आने का समय तो होता है, पर जाने का नहीं। अतिरिक्त घंटे काम का पारिश्रमिक ओवरटाइम भत्ते के रूप में बड़ी मुश्किल से सरकारी संस्थानों में मिल पाता है, पर निजी संस्थानों में तो इसका रिवाज ही नहीं।

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बड़ी-बड़ी कंपनियों में तो श्रम कानून होता ही नहीं,वहां मालिकों का कानून चलता है। वहां श्रम संगठनों की कोई औकात होती नहीं। एक ओर श्रमिकों के शोषण पर सरकारी स्तर पर कोई कसाव दिखता है। नहीं तो दूसरी ओर श्रमिक संगठनों में जुझारूपन का अभाव ही नजर आता है।

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श्रम दिवस एक प्रकार से अपने आप को झुठलाते हुए मनाए जाने जैसा एक दिखावी दिवस के सिवाय मजबूरी में मनाया जाने दिवस कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी…। यही वास्तविक सच्चाई है। इसलिए मजदूर जिंदगी भर मजदूर ही बना रह जाता है। गरीब और गरीब होते जाना मजदूरों की नियति है।

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फिर भी हम बड़े मनोयोग से नारा लगाते हैं…मजदूर दिवस अमर रहे। ये कैसी विडंबना है। देश के उस वर्ग के साथ, जिसके कंधों पर चल कर देश और समाज का विकास होता आया है। उन्हीं मजदूरों का विकास तो उनसे सदैव ही कोसो दूर रहा है और शायद ताजिंदगी दूर होते चले जाना है। धन्य हैं, मजदूरों की कौम,जिनमे इतनी सहनशीलता है,जो सारे शोषण के बाद भी जिंदगी की जद्दोजहद में कभी हार नहीं मानता…।

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