- सीटू ने कहा- असीमित ग्रेच्युटी उद्योग विशेष के लिए बनी भारत की पहली द्विपक्षीय समिति एनजेसीएस की देन है।
सूचनाजी न्यूज, भिलाई। सेल (SAIL) कर्मचारियों की ग्रेच्युटी का मामला हल नहीं हो पा रहा है। एनजेसीएस (NJCS) और कोर्ट में क्या चल रहा है। वर्तमान में लाभ कैसे दिलाया जाए, आदि विषयों पर बैठक हुई। सेल प्रबंधन (SAIL Management) द्वारा एकतरफा ग्रेच्युटी कटौती किए जाने से पीड़ित भिलाई इस्पात संयंत्र (Bhilai Steel Plant) के सेवानिवृत्त कर्मी लगातार लामबंद होकर दावा प्रकरण दायर करने सीटू कार्यालय पहुंच रहे हैं।
दावा प्रकरण दायर करने से पूर्व मामले की पूरी जानकारी देने हेतु रविवार को सीटू कार्यालय में पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन दिया गया। प्रस्तुतिकरण में मामले की पूरी जानकारी देते हुए सीटू नेता एसपी डे ने बताया कि सेल कर्मियों को एनजेसीएस के प्रथम समझौता से प्राप्त असीमित ग्रेजुएटी को अब तक एनजेसीएस में हुए सभी समझौतों में बरकरार रखा गया।
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पिछले वेतन समझौता में भी प्रबंधन ने कहा था कि मंत्रालय से काफी दबाव है कि इस्पात कर्मियों के ग्रेच्युटी को भी अन्य सार्वजनिक उद्योग के कर्मियों को प्राप्त ग्रेच्युटी की तरह सीमित किया जाए, किंतु एनजेसीएस के सभी यूनियनों के विरोध के कारण प्रबंधन द्वारा ग्रेच्युटी सीमित नहीं किया जा सका।
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एक्ट बनने के पहले से इस्पात कर्मियों को एनजेसीएस में मिला ग्रेच्युटी का अधिकार
सीटू नेता ने कहा कि ग्रेच्युटी एक्ट 1972 में बना किंतु ग्रेच्युटी एक्ट बनने से काफी पहले इस्पात कर्मियों को 28 अक्टूबर 1970 को हुए पहले एनजेसीएस समझौता के माध्यम से यह ग्रेच्युटी का अधिकार प्राप्त हुआ है।
इस्पात मंत्रालय की मंजूरी से प्रबंधन ने जारी किया एक तरफा कटौती आदेश
ज्ञात हो कि सेल प्रबंधन द्वारा 26 नवंबर 2021 को एकतरफा आदेश निकाल कर सेल कर्मियों के ग्रेच्युटी को भी अन्य उद्योगों के कर्मियों की तरह सीमित कर दिया था।
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इस मामले में हिन्दुस्तान स्टील एम्पलॉइज़ यूनियन (Hindustan Steel Employees Union) की ओर से सर्वप्रथम 29 नवंबर 2021 को प्रबंधन के पास लिखित आपत्ति दर्ज की गई, तत्पश्चात 4 दिसंबर 2021 को उप मुख्य श्रम आयुक्त के पास परिवाद दायर कर शिकायत की गई थी ।
सुलहकर्ता अधिकारी होते हैं उप मुख्य श्रमायुक्त
सीटू नेता ने जानकारी दी कि परिवाद मामले में श्रमायुक्त विभाग के किसी भी अधिकारी की भूमिका एक सुलहकर्ता अधिकारी की होती हैं। वे कोई निर्णय नहीं ले सकते हैं। इसी का लाभ उठा कर प्रबंधन टालमटोल रवैया अपना रही थी ताकि मामले को लंबा लटका कर रखा जा सके।
दावा प्रकरण में सहायक श्रम आयुक्त होते हैं प्राधिकारी
इसलिए यूनियन के मार्गदर्शन में कर्मियों ने सहायक श्रमायुक्त के पास व्यक्तिगत दावा प्रकरण दायर करना शुरू किया। ज्ञात हो कि ग्रेच्युटी के तहत दावा प्रकरण में सहायक श्रमायुक्त के पास निर्णय देने का अधिकार होता है और उस निर्णय के खिलाफ किसी भी पक्ष को आपत्ति होने पर उप मुख्य श्रमायुक्त के पास अपील करना होता है क्योंकि “ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 (Payment of Gratuity Act 1972)’ के अन्तर्गत उप मुख्य श्रमायुक्त की भूमिका अपीलीय अधिकारी की होती है।
आखिर क्या है सीटू का रूख
इस पूरे मामले में यूनियन का यह रूख है कि सेल कर्मियों को इस्पात उद्योग के स्तर पर बनी द्विपक्षीय समिति एनजेसीएस समझौता के तहत असीमित ग्रेच्युटी प्राप्त होता है, और ‘ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972’ के अनुसार सेल कर्मियों को मिलने वाली इस सेवा निवृत्त लाभ में परिवर्तन, समझौते के द्वारा ही संभव है। ग्रेच्युटी लाभ में कोई भी परिवर्तन या कटौती प्रबंधन के एकतरफा आदेश से नहीं हो सकता है।
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एनजेसीएस को अवैध कहना कर्मचारी विरोधी मानसिकता
इस अवसर पर सीटू नेता का ध्यान इस्पात राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के उस बयान की ओर दिलाया गया जिसमें उन्होंने एनजेसीएस को अवैध बताया।
सीटू नेता ने बताया कि भारत को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात 23 साल तक किसी भी उद्योग के कर्मियों को प्रबंधन से अपनी मांगों को लेकर स्वयं या अपने यूनियन के माध्यम से चर्चा करने का अधिकार नहीं था। दुर्गापुर इस्पात संयंत्र में तो प्रबंधन द्वारा कर्मियों से मांग पत्र स्वीकार करने से इंकार करने पर शुरू हुए आंदोलन को कुचलने के लिए 5 अगस्त 1965 को की गई गोलीबारी में दो साथियों आशीष दासगुप्ता एवं शेख जब्बार शहीद हुए थे, जिनकी याद में आज भी 5 अगस्त को दुर्गापुर में शहीद दिवस मनाया जाता है।
इसी तरह अन्य इस्पात संयंत्र में भी कर्मियों को स्वच्छ पेयजल, विश्राम गृह, कार्यस्थल सुरक्षा से संबंधित मांग उठाने के लिए भी प्रबंधन के दमन का शिकार होना पड़ता था, प्रबंधन के दमन और कर्मियों के आक्रोश से पूरे इस्पात उद्योग में अराजकता का माहौल बन गया था।
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ऐसी परिस्थिति में तत्कालीन यूनियन नेताओं स्व.गोपेश्वर जी, स्व. आर.के.सामंत राय, जीवन राय के प्रयासों और इस्पात मंत्री कुमार मंगलम के पहल से इस्पात उद्योग के लिए राष्ट्रीय स्तर पर द्विपक्षी समिति बनाकर आपसी चर्चा द्वारा समस्याओं के निराकरण के लिए यह प्रयोग हुआ, जिसमें सार्वजनिक उपक्रम के इस्पात संयंत्र के अलावा टाटा स्टील तथा इसको जैसे निजी इस्पात संयंत्र भी शामिल थे।
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बाद में इस समिति का नाम एनजेसीएस पड़ा जिसमें न केवल कर्मियों के हितों के लिए कई निर्णय लिए गए बल्कि उद्योग को बचाने के लिए भी कई महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं । असीमित ग्रेच्युटी उनमें से एक है। माननीय इस्पात राज्य मंत्री के बयान से इस बात की पुष्टि हो गई है कि प्रबंधन ने मंत्रालय के दबाव में ग्रेच्युटी सीलिंग किया है।
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