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डॉ. जितेन्द्र सिंह ने पेंशन संबंधी शिकायतों के समयबद्ध निवारण का आह्वान किया।
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किसी भी सेवानिवृत्त व्यक्ति को अपने अधिकारों के लिए भटकना नहीं चाहिए।
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डॉ. जितेन्द्र सिंह ने 13वीं अदालत में त्वरित पेंशन न्याय का समर्थन किया।
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पेंशन अदालतों के माध्यम से 18,000 से अधिक शिकायतों का निवारण।
सूचनाजी न्यूज, दिल्ली। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने आज पेंशन संबंधी शिकायतों के लिए समयबद्ध निवारण तंत्र बनाने का आह्वान किया। उन्होंने इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यापक शासन मॉडल के अनुरूप बनाने का आह्वान किया, जिसमें नागरिकों को केंद्र में रखा गया है।
नई दिल्ली में आयोजित 13वीं अखिल भारतीय पेंशन अदालत में बोलते हुए डॉ. जितेन्द्र सिंह ने भारत के पेंशनभोगियों की गरिमा सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक संवेदनशीलता और दक्षता की आवश्यकता पर बल दिया।
पूरे देश से पेंशनभोगी, सरकारी अधिकारी और विभाग प्रमुखों को साथ लेकर आए एक दिवसीय कार्यक्रम में डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि पेंशन अदालत मॉडल हाल के वर्षों में किए गए सबसे नागरिक-हितैषी सुधारों में से एक है।
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उन्होंने कहा, “एक पेंशनभोगी, जिसने राष्ट्र के लिए जीवन भर सेवा की है, उसे अपने हक के लिए इधर-उधर भटकना नहीं चाहिए।” उन्होंने विभागों से ऐसे मामलों को सुलझाने में “समग्र सरकार” का दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि निवारण केवल प्रतिक्रियात्मक नहीं बल्कि पूर्वानुमानित, प्रौद्योगिकी द्वारा समर्थित और करुणा से प्रेरित होना चाहिए।
सितंबर 2017 में अपनी शुरुआत के बाद से, देश भर में 12 पेंशन अदालतें आयोजित की गई हैं, जिनमें कुल 25,416 मामले लिए गए हैं – जिनमें से 18,157 सफलतापूर्वक हल किए गए हैं। इसका मतलब है कि समाधान दर 71 प्रतिशत से अधिक है। यह वह संख्या है, जिसे डॉ. जितेन्द्र सिंह ने पहल की प्रभावशीलता के प्रमाण के रूप में उद्धृत किया।
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डॉ. जितेन्द्र सिंह ने पिछली अदालतों की कई सफल कहानियां साझा कीं, जिनमें जसोदा देवी का मामला भी शामिल है, जिन्हें 36 साल बाद उनका उचित हक मिला, और अनीता कनिक रानी, जिन्हें उनके मामले की सुनवाई के दिन ही 20 लाख रुपये का बकाया पारिवारिक पेंशन दिया गया। उन्होंने कहा कि इनमें से कई कहानियां अब पेंशन और पेंशनभोगी कल्याण विभाग (डीओपीपीडब्ल्यू) की उपलब्धियों में दर्ज हैं।
13वीं अखिल भारतीय पेंशन अदालत में डॉ. जितेन्द्र सिंह ने 12वीं पेंशन अदालत की सफलता की कहानियों का संकलन भी जारी किया, जिसका शीर्षक है “बहादुर सैनिक और वीर नारियां”। पुस्तिका में काफी समय से लंबित पेंशन संबंधी शिकायतों के प्रेरक विवरण दिए गए हैं, जिन्हें अदालत की प्रणाली द्वारा सुलझाया गया, जिसमें रक्षा पेंशनभोगियों और सशस्त्र बलों के कर्मियों के परिवारों पर विशेष ध्यान दिया गया।
ये वास्तविक जीवन की कहानियां सरकार की अपने सेवानिवृत्त कर्मचारियों, विशेष रूप से महिलाओं और वीर नारियों की सेवा और बलिदान का सम्मान करने की प्रतिबद्धता का प्रमाण हैं, ताकि उनके सेवानिवृत्ति के बाद के जीवन में समय पर न्याय और सम्मान सुनिश्चित किया जा सके।
इस वर्ष की अदालत में पारिवारिक पेंशन के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिनमें से कई मुद्दे दावेदार या प्राप्तकर्ता के रूप में महिलाओं द्वारा उठाए गए थे। डॉ. जितेन्द्र सिंह ने पेंशन और पेंशनभोगियों के एक बड़े और अक्सर कमजोर वर्ग की ज्वलंत चिंताओं को स्वीकार करने वाले विषय को चुनने के लिए पेंशन और पेंशनभोगी विभाग को बधाई दी।
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उन्होंने पेंशनभोगियों तक पहुंचने के लिए डिजिटल साधनों के उपयोग को प्रोत्साहित किया, जो व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हो सकते। उन्होंने कहा, “ये अदालतें न केवल शिकायत निवारण के लिए एक मंच का प्रतिनिधित्व करती हैं, बल्कि सरकार का वादा भी है कि कोई भी आवाज अनसुनी नहीं रहेगी।” डॉ. जितेन्द्र सिंह ने यह भी दोहराया कि सीपीईएनजीआरएएमएस (केंद्रीकृत पेंशन शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली) जैसी डिजिटल पहलों का तत्क्षण ट्रैकिंग और समाधान के लिए लाभ उठाया जाना चाहिए।
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डॉ. जितेन्द्र सिंह ने विभागों और अधिकारियों से पेंशनभोगियों के साथ सिर्फ लाभार्थी के रूप में नहीं बल्कि “प्रशासनिक परिवार के सम्मानित सदस्य” के रूप में व्यवहार करने का आग्रह किया। यह देखते हुए कि अधिकतर शिकायतें टाले जा सकने वाले विलंब या प्रक्रियात्मक मुद्दों से उत्पन्न होती हैं, उन्होंने अधिक अंतर-विभागीय समन्वय और जवाबदेही का आह्वान किया।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि अदालत केवल एक शिकायत निवारण मंच नहीं है, बल्कि प्रशासनिक प्रदर्शन का एक बैरोमीटर भी है। उन्होंने कहा, “जब नागरिकों को लगता है कि उनकी बात सुनी जा रही है और उनका सम्मान किया जा रहा है, तो इससे शासन में भरोसा बढ़ता है।”
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