भिलाई इस्पात संयंत्र के AGM यशवंत साहू के छत्तीसगढ़ी उपन्यास ‘दाई’ का विमोचन, स्वास्थ्य मंत्री ने ये कहा…

  • यशवंत साहू ‘कोंगनिहा’ ‘दसमत’ उपन्यास की रचना कर चुके हैं, जो विश्वविद्यालय स्तर पर संदर्भ ग्रंथ के रूप में सम्मिलित है।

सूचनाजी न्यूज, भिलाई। सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र के अधिकारी एवं साहित्यकार यशवंत साहू ‘कोंगनिहा’ द्वारा रचित छत्तीसगढ़ी उपन्यास ‘दाई’ का भव्य विमोचन अभनपुर के मंडी प्रांगण में सम्पन्न हुआ।

यह आयोजन छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत, नारी सशक्तिकरण और लोकगाथा के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल थी। यशवंत साहू वर्तमान में संयंत्र के नगर सेवाएं विभाग (टीएसडी) में प्रवर्तन अनुभाग में सहायक महाप्रबंधक के रूप में पदस्थ है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री (छत्तीसगढ़ शासन) श्याम बिहारी जायसवाल थे। जायसवाल ने यशवंत साहू के उपन्यास का मंच से विमोचन किया व इसकी सफलता हेतु लेखक को बधाई दी।

उपन्यास विमोचन कार्यक्रम में प्रदेश अध्यक्ष (छत्तीसगढ़ कलार समाज) युवराज सिन्हा, अध्यक्ष (योग आयोग, छत्तीसगढ़) रूप नारायण सिन्हा, विधायक (बालोद) संगीता सिन्हा, विधायक (महासमुंद) योगेश्वर राजू सिन्हा, विधायक (अभनपुर) इन्द्र कुमार साहू, तथा महापौर (रिसाली) शशि सिन्हा छत्तीसगढ़ कलार समाज के अनेक वरिष्ठ पदाधिकारी एवं नागरिकगण भी सम्मिलित हुए।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री (छत्तीसगढ़ शासन) श्याम बिहारी जायसवाल ने उपन्यास की सराहना करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ की महान विभूतियों पर आधारित ऐसे साहित्य से युवाओं को प्रेरणा मिलेगी। मां बहादुर कलारिन का चरित्र समाज के लिए अनुकरणीय है। उन्होंने शवंत साहू ‘कोंगनिहा’ को इस अनछुए विषय पर उपन्यास लेखन के लिए बधाई दी।

सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र के नगर सेवाएं विभाग ने यशवंत साहू को इस उपलब्धि पर बधाई देते हुए उनके साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में इस योगदान को संयंत्र के बहुआयामी प्रतिभा-संपन्न मानव संसाधन के महत्वपूर्ण अंग के रूप में सराहना की है।
उपन्यास ‘दाई’ छत्तीसगढ़ के कलार समाज की कुलदेवी मां बहादुर कलारिन की जीवनगाथा पर आधारित है, जिनका जीवन त्याग, संघर्ष और न्यायप्रियता का अद्वितीय उदाहरण है।

उपन्यास में वर्णित है कि किस प्रकार मां बहादुर कलारिन ने एकल संघर्ष के माध्यम से अपने पुत्र छछानछाड़ू को सोररगढ़ का राजा बनाया, परंतु स्त्रियों के अपमान पर उसे मृत्युदंड देने से भी पीछे नहीं हटीं। यह कथा न केवल मातृत्व के गूढ़ स्वरूप को उद्घाटित करती है, बल्कि नारी शक्ति की गौरवगाथा को भी सशक्त रूप में प्रस्तुत करती है।

लगभग 200 पृष्ठों में समाहित यह कृति छत्तीसगढ़ के बारहवीं शताब्दी के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक जीवन का जीवंत चित्रण करती है। लेखक ने उपन्यास के माध्यम से नई पीढ़ी को छत्तीसगढ़ की गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत एवं नारी विभूतियों से परिचित कराने का प्रयास किया है।

उल्लेखनीय है कि यशवंत साहू ‘कोंगनिहा’ इससे पूर्व ‘दसमत’ जैसे महत्वपूर्ण उपन्यास की रचना कर चुके हैं, जो विश्वविद्यालय स्तर पर संदर्भ ग्रंथ के रूप में सम्मिलित है। उनके अन्य साहित्यिक कृतियों में “मैं बस्तर स्वर्णिम अतीत”, “वह धरा जहां पर सुर गूंजा”, “संगम”, “राजिम” तथा “पलायन” प्रमुख हैं।